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Sunday, 19 July 2020

झुकना परिस्थिति से इन्सान की विडम्बना


इन्सान की विडम्बना 


इंसांन झूकता नहीं ।
झुकाया चला जाता  है।।

अपने जसबात को  छिपा कर। 
अपनो के लिए जीना चाहता है।।

इंसांन झूकता नहीं ।
झुकाया चला जाता  है।।

पल्भर नीन्द आती नही रात्रि गुजर जाती है ।
अपने सारे गम छीपाता चला जाता है ।।

एक घड़ी नही रुकता मंजिल को पाने मे ।
काटे आय कितने ही रास्ते मे उसके ।
अपने मन और चित को एकत्रित करता चला जाता है ।।

कभी अपनो के लिये झुक जाता है ।
कभी अपने उसको झुकाते है ।।

कभी रिस्तो के लिये झुक जाता है ।
कभी रिस्ते उसको झुकाते है ।।

कभी प्यार से झुक जाता हे ।
कभी प्यार उसको झुका देता हे ।

कभी नौकरी तो कभी चाकरी ।।
कभी पैसा झुका देता है ।
तो कभी पैसो के लिये झुक जाता है ।।

समझना मुश्किल है बहुत ।
ये किस्मत का खेल ।।
ये अध्भ्उत रचना भगवान की ।
है तेरी लीला अपरंपार ।।
समझ लिया तो समजित ज्ञान का भण्डार ।।

ये ही तो है जुनून इन्सान का  ।।

इंसांन झूकता नहीं । 
झुकाया चला जाता  है।।

अपने जसबात को  छिपा कर।
अपनो के लिए जीना चाहता है।।


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कृपया प्रस्तुत कविता को माध्यमिक कक्षा के लिये प्रिंट करने की लिय्र कमेंट बॉक्स मै कमेंट करे ।- (हाँ या ना)

बिदेश्वरी उनियाल द्वारा लिखित 

धन्यवाद 🙏

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